कट रही है ज़िन्दगी ,कोई जीना नहीं है अब...
दिल मेरा मोहब्बत का मदीना नहीं है अब ...
कूछेक मुझको छोड़ गए,कुछ को मैंने छोड़ दिया ...
मेरे अकेलेपन और दर्द की कोई सीमा नहीं है अब...
मैंने खाक में मिलती सहन्शाहों की शान देखी है...
जो कभी थी बुलंद वो लड़खड़ाती जुबान देखी है ...
मैं कैसे रोक लूँ अपने कदम आराम करने को ...
मैंने अपने बाप के पैरों में थकान देखी है ...
जी से बड़ी दूर आजकल जान रहती है ...
इस बात से मुझको मेरी पहचान रहती है ...
ठहाके गुम हुए कहीं दूर अंधेरों में ...
होठों पे अब हलकी सी मुस्कान रहती है ...
हर दर्द मिटने वाले , मेरे नाथ ना जाने कहाँ गए ....
एक सांस ना ली जिनके बिना , वो साथ ना जाने कहाँ गए ....
वो ही तो थे जो अच्छे बुरे की राह दिखाते थे ....
हमे आशीष देने वाले , वो हाथ ना जाने कहाँ गए ....
मेरा तुझसे बंधा है धागा , दुःख दूम दबा कर भागा ...
तेरे दर्शन पाकर पहुँच गया मैं पल में काशी काबा ...
बड़ा तपाया दुनिया ने छाँव का झांसा दे देकर ...
तेरे हाथों की छाया में बड़ी ठंडक है बाबा ...
बेगाने शरीर में छुपा बैठा हूँ , फ़कीर सा बना ...
चेहरा भले ही रोशन है , मगर अंदर अँधेरा घना ...
सब निकल गए अपने रास्ते , अकेले चलो रवि ...
ना तू किसी के लिए ना कोई तेरे लिए बना ...
गुनाह-ऐ-बेवफाई की बस ये ही इल्तजा है ...
जा तुझे आज़ाद किया तेरी ये ही सजा है ...
मत घसीटो मुझको अपनी रंग बिरंगी दुनिया में ...
एक गुमनाम गली की अँधेरी कोठरी में ही मजा है ...
मकाँ बदलूं ,गली बदलूं , या फिर शहर बदल लूँ अब ...
मेरा यहाँ अब कुछ नहीं रहा ,बेहतर हो गर निकल लूँ अब ...
गले कि हड्डी बन गयी हैं यादें तेरे साथ की...
एक मन करे निकाल फेंकूं , एक मन करे निगल लूँ अब ....
इसे टूट ही जाने दो ,ये रिश्ता धागा कच्चा है ...
मालूम नहीं मुझे प्यार मेरा ,झूठा है या सच्चा है ...
किया करती है दुनिआ रोजे महबूब के लौट आने के...
मगर इस दर-ओ-मकाँ से तेरा चले जाना ही अच्छा है ...